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अमरूद की खेती के लिए जलवायु

अमरूद की खेती कैसे करें: तरीका, किस्में, अमरूद के रोग और उनके उपाय

अमरूद की खेती कैसे करें: तरीका, किस्में, अमरूद के रोग और उनके उपाय

किसान और पौधे दोनों एक दूसरे के पूरक हैं. किसान जो भी फसल उगता है वो पौधे के रूप में ही होती है. इसमें फर्क सिर्फ इतना है की कुछ पौधे हमारी खाद्यान्य जरूरतें पूरी करते हैं और कुछ हमारी औषधीय जरूरतों को पूरा करते हैं. वैसे तो हम अपनी इस सीरीज में सभी किसानोपयोगी पौधों की बात करेंगें.पौधे किसान क्या हर जीव के लिए बहुत आवश्यक हैं. पेड़ों से हमें ऑक्सीजन मिलती है तथा इनसे हमें फर्नीचर और जलाने के लिए लकड़ी मिलती है. किसान को इनसे इनकम होती है जो की कम से कम जमीन में ज्यादा से ज्यादा आमदनी होती है. ये किसान और मिट्टी के ऊपर निर्भर करता है की कौन से फल या किस्म के पौधे को हमारी जमीन अच्छे से पकड़ती है. जिनमे अमरूद, आम, कैला , जामुन, शीशम , पीपल , महोगनी , सहजन , नीम , नीबू ,काकरोंदा, अनार , चन्दन इत्यादि..

अमरूद खाने के फायदे

अमरूद एक बहुत ही स्वादिष्ट और पौष्टिक फल है इसमें बिटामिन C अधिक मात्रा में पाई जाती है वैसे तो इसमें बिटामिन A तथा बी, चूना, लोहा भी पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है इसको गरीबों का सेब भी कहा जाता है. सामान्यतः यह साल में दो बार फल देता है. इससे जैली बनाई जाती है तथा बाजार में इनके जूस भी आते है. सामान्यतः यह लोगों का पसंदीदा फल होता है. ये भी देखें:
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अमरूद के लिए मिट्टी:

अमरूद के लिए दोमट एवं बलुई मिट्टी ज्यादा अच्छी रहती है लेकिन इसको किसी भी तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है. इसके पौधे को उगठा रोग से बचाने के लिए 6 से 7.5 PH मान की मिट्टी उपयुक्त होती है. इससे ज्यादा PH मान होने से उगठा रोग की संभावना बनी रहती है.

अमरूद की खेती के लिए मौसम:

अमरूद को गर्म और ठन्डे दोनों मौसम में उगाया जा सकता है. ये 50 डिग्री तक का तापमान भी झेल लेता है और ठण्ड को भी बर्दास्त कर लेता है. वैसे इसके लिए शुष्क मौसम भी अनुकूल होता है. सर्दियों में फल की क्वालिटी भी बहुत अच्छी होती है गर्मी के फल की अपेक्षा.

अमरूद की उन्नत किस्में:

सामान्यतः अमरुद की ५-६ किस्में आती है, इनमे प्रमुख रूप से इलाहाबादी- सफेदा , एप्पल कलर, चित्तीदार, सरदार , ललित एवं अर्का-मृदुला, भारत में अमरूद की प्रसिद्ध किस्में इलाहाबादी सफेदा, लाल गूदेवाला, चित्तीदार, करेला, बेदाना तथा अमरूद सेब हैं.

अमरुद उगाने का तरीका:

अमरूद को पौधे लगा के उगाया जाता है इसकी भटकलम विधि से भी अच्छी पौध तैयार की जाती है. कलम के द्वारा तैयार किये हुए पौधे को एक तरह की पॉलीथिन( अल्काथीन) से कलम वाली जगह पर कवर कर दिया जाता है. और जब कलम फूटने लगाती है तो ऊपर का भाग अलग कर दिया जाता है तथा उस कपोल को विक्सित होने देते है. कलम की विधि जून और जुलाई महीने में की जाती है खास बात यह है की इस महीने की 70 से 80 प्रतिशत कलम सफल होती हैं.

अमरूद के पौधे लगाने का समय:

सामान्यतः किसी भी पौधे को लगाने का सही समय मानसून में ही होता है इस समय पौधों के लिए मौसम अनुकूल होता है तथा पौधे अपनी जड़ें आराम से पकड़ लेते हैं इस लिए अमरूद के लिए भी जुलाई से अगस्त का समय मुफीद होता है. वैसे अगर सिचाईं की व्यवस्था हो तो आप इसको फरबरी से अप्रैल के बीच में भी लगा सकते है. वो समय भी भी पौधों के लिए मुफीद होता है. ये भी देखें: देश में सासनी का सुप्रशिद्ध अमरूद रोगग्रसित होने की वजह से उत्पादन क्षेत्रफल में भी आयी गिरावट

पौधे मिलने की जगह:

आजकल सरकार भी किसानों की आय बढ़ाने पर काफी जोर दे रही है. इसकी वजह से सरकार भी पौधे फ्री में दे रही है और नहीं तो आप किसी नर्सरी से भी ये पौधे ले सकते हैं.

अमरूद के पौधे लगाने की विधि

अगर आप बारिश के मौसम में पौधे लगा रहे है तो करीब 25 दिन पहले 2X2X2 यानि २ फुट लम्बा, 2 फुट चौड़ा और 2 फुट गहरा गड्ढा खोद के उसे कुछ दिन खुला छोड़ दें कुछ दिन बाद उसमे गोबर की बनी खाद फास्फेट , पोटाश और मिथाइल मिला के गड्ढे को ऊपर तक भर दें और या तो सिचाईं कर दें या उस पर एक बारिश निकलने दें जिससे की खाद गड्ढे में रम जाये उसके बाद पौधे लगा के फिर सिंचाई कर दें. गड्ढे से गड्ढे की दूरी 5 या 6 फुट की रखें इससे अमरूद के पेड़ को फैलने में कोई दिक्कत नहीं होगी. अमूमन बोलै जाता है कि जिस पेड़ पर फल आते हैं वो झुका हुआ होता है अमरूद के लिए ये कहावत एकदम सटीक बैठती है. इसकी डालियों को नीचे कि तरफ बांध दिया जाता है जिससे कि इसमें में फूल और फल ज्यादा आता है. अमरुद के पौधों कि कटाई करके उन्हें छोटा रखा जाता है ताकि फल अच्छा आये.

अमरुद के रोग और उनके उपाय:

अमरुद में सामान्यतः रोग ज्यादा नहीं होते लेकिन इस फल कि मिठास कि वजह से इसमें कीड़ा निकलने, उगठा रोग, और तनाभेदक रोग लगाने की संभावना रहती है. इसके लिए पौधे में नीचे चूना, जिप्सम व खाद मिला के लगाएं. तनाभेदक के लिए पेड़ के तने के छिद्र में मिट्टी का तेल डाल के गीली मिट्टी से बंद कर दें.
अमरूद की खेती से जुड़ी विस्तृत जानकारी

अमरूद की खेती से जुड़ी विस्तृत जानकारी

भारत के अंदर अमरूद की फसल आम, केला और नीबू के बाद चौथे स्थान पर आने वाली व्यावसायिक फसल है। भारत में अमरुद की खेती की शुरुआत 17वीं शताब्दी से हुई। अमेरिका और वेस्ट इंडीज के उष्ण कटिबंधीय क्षेत्र अमरुद की उत्पत्ति के लिए जाने जाते हैं। अमरूद भारत की जलवायु में इतना घुल मिल गया है, कि इसकी खेती बेहद सफलतापूर्वक की जाती है। 

वर्तमान में महाराष्ट्र, कर्नाटक, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडू, बिहार और  उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त इसकी खेती पंजाब और हरियाणा में भी की जा रही है। पंजाब में 8022 हेक्टेयर के भू-भाग परअमरूद की खेती की जाती है और औसतन पैदावार 160463 मीट्रिक टन है। इसके साथ ही भारत की जलवायु में उत्पादित अमरूदों की मांग विदेशों में निरंतर बढ़ती जा रही है, जिसके चलते इसकी खेती व्यापारिक रूप से संपूर्ण भारत में भी होने लगी है।

अमरूद का स्वाद और पोषक तत्व

अमरुद का स्वाद खाने में ज्यादा स्वादिष्ट और मीठा होता है। अमरुद के अंदर विभिन्न औषधीय गुण भी विघमान होते हैं। इस वजह से इसका इस्तेमाल दातों से संबंधी रोगों से निजात पाने के लिए भी किया जाता है। बागवानी में अमरूद का अपना एक अलग ही महत्व है। अमरूद फायदेमंद, सस्ता और हर जगह मिलने की वजह से इसे गरीबों का सेब भी कहा जाता है। अमरुद के अंदर विटामिन सी, विटामिन बी, कैल्शियम, आयरन और फास्फोरस जैसे पोषक तत्व विघमान होते हैं।

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अमरुद से कितना लाभ अर्जित होता है

अमरुद से जेली, जूस, जैम और बर्फी भी बनायीं जाती हैं। अमरुद के फल की अच्छे से देख-रेख कर इसको ज्यादा समय तक भंडारित किया जा सकता है। किसान भाई अमरुद की एक बार बागवानी कर तकरीबन 30 साल तक उत्पादन उठा सकते हैं। किसान एक एकड़ में अमरूद की बागवानी से 10 से 12 लाख रूपए वार्षिक आय सुगमता से कर सकते हैं। यदि आप भी अमरूद की बागवानी करने का मन बना रहे हैं तो यह लेख आपके लिए अत्यंत लाभकारी है। क्योंकि, हम इस लेख में आपको अमरुद की खेती के बारे में जानकारी देंगे।

अमरूद की व्यापारिक उन्नत किस्में 

पंजाब पिंक: इस किस्म के फल बड़े आकार और आकर्षक सुनहरी पीला रंग के होते हैं। इसका गुद्दा लाल रंग का होता है, जिसमें से काफी अच्छी सुगंध आती है। इसके एक पौधा का उत्पादन वार्षिक तकरीबन 155 किलोग्राम तक होता है।

इलाहाबाद सफेदा: इसका फल नर्म और गोल आकार का होता है। इसके गुद्दे का रंग सफेद होता है, जिस में से आकर्षक सुगंध आती है। एक पौधा से तकरीबन सालाना पैदावार 80 से 100 किलोग्राम हो सकती है।

ओर्क्स मृदुला: इसके फल बड़े आकार के, नर्म, गोल और सफेद गुद्दे वाले होते हैं। इसके एक पौधे से वार्षिक 144 किलोग्राम तक फल हांसिल हो जाते हैं।

सरदार:  इसे एल 49 के नाम से भी जाना जाता है। इसका फल बड़े आकार और बाहर से खुरदुरा जैसा होता है। इसका गुद्दा क्रीम रंग का होता है। इसका प्रति पौधा वार्षिक उत्पादन 130 से 155 किलोग्राम तक होती है।

श्वेता: इस किस्म के फल का गुद्दा क्रीमी सफेद रंग का होता है। फल में सुक्रॉस की मात्रा 10.5 से 11.0 फीसद होती है। इसकी औसतन पैदावार 151 किलो प्रति वृक्ष होती है। 

पंजाब सफेदा: इस किस्म के फल का गुद्दा क्रीमी और सफेद होता है। फल में शुगर की मात्रा 13.4% प्रतिशत होती है और खट्टेपन की मात्रा 0.62 प्रतिशत होती है।

अन्य उन्नत किस्में: इलाहाबाद सुरखा, सेब अमरूद, चित्तीदार, पंत प्रभात, ललित इत्यादि अमरूद की उन्नत व्यापारिक किस्में है। इन सभी किस्मों में टीएसएस की मात्रा इलाहबाद सफेदा और एल 49 किस्म से ज्यादा होती है। 

अमरूद की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु 

भारतीय जलवायु में अमरूद इस तरह से घुल मिल गया है, कि इसकी खेती भारत के किसी भी हिस्से में अत्यंत सफलतापूर्वक सुगमता से की जा सकती है। अमरूद का पौधा ज्यादा सहिष्णु होने की वजह इसकी खेती किसी भी प्रकार की मिट्टी एवं जलवायु में बड़ी ही आसानी से की जा सकती है। अमरुद का पौधा उष्ण कटिबंधीय जलवायु वाला होता है।

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इसलिए इसकी खेती सबसे अधिक शुष्क और अर्ध शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों में की जाती है। अमरुद के पौधे सर्द और गर्म दोनों ही जलवायु को आसानी से सहन कर लेते हैं। किन्तु सर्दियों के मौसम में गिरने वाला पाला इसके छोटे पौधों को नुकसान पहुंचाता है। इसके पौधे अधिकतम 30 डिग्री तथा न्यूनतम 15 डिग्री तापमान को ही सहन कर सकते है। वहीं, पूर्ण विकसित पौधा 44 डिग्री तक के तापमान को भी सहन कर सकता है।

खेती के लिए भूमि का चुनाव

जैसा कि उपरोक्त में आपको बताया कि अमरूद का पौधा उष्ण कटिबंधीय जलवायु का पौधा हैं। भारतीय जलवायु के अनुसार इसकी खेती हल्की से भारी और कम जल निकासी वाली किसी भी तरह की मृदा में सफलतापूर्वक की जा सकती है। परंतु, इसकी बेहतरीन व्यापारिक खेती के लिए बलुई दोमट से चिकनी मिट्टी को सबसे अच्छा माना जाता है। क्षारीय मृदा में इसके पौधों पर उकठा रोग लगने का संकट होता है। 

इस वजह से इसकी खेती में भूमि का पी.एच मान 6 से 6.5 के बीच होना चाहिए। इसकी शानदार पैदावार लेने के लिए इसी तरह की मिट्टी के खेत का ही इस्तेमाल करें। अमरूद की बागवानी गर्म एवं शुष्क दोनों जलवायु में की जा सकती है। देश के जिन इलाकों में एक साल के अंदर 100 से 200 सेमी वर्षा होती है। वहां इसकी आसानी से सफलतापूर्वक खेती की जा सकती है।

अमरूद के बीजों की बुवाई की प्रक्रिया

अमरूद की खेती के लिए बीजों की बुवाई फरवरी से मार्च या अगस्त से सितंबर के महीने में करना सही है। अमरुद के पौधों की रोपाई बीज और पौध दोनों ही तरीकों से की जाती है। खेत में बीजों की बुवाई के अतिरिक्त पौध रोपाई से शीघ्र उत्पादन हांसिल किया जा सकता है। यदि अमरुद के खेत में पौध रोपाई करते हैं, तो इसमें पौधरोपण के वक्त 6 x 5 मीटर की दूरी रखें। अगर पौध को वर्गाकार ढ़ंग से लगाया गया है, तो इसके पौध की दूरी 15 से 20 फीट तक रखें। पौध की 25 से.मी. की गहराई पर रोपाई करें। 

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इससे पौधों और उसकी शाखाओं को फैलने के लिए काफी अच्छी जगह मिल जायेगी। अमरूद के एक एकड़ खेत वाली भूमि में तकरीबन 132 पौधे लगाए जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त यदि इसकी खेती की बुवाई बीजों के जरिए से कर रहे हैं, तो फासला पौध रोपाई के मुताबिक ही होगा और बीजों को सामान्य गहराई में बोना चाहिए।

बिजाई का ढंग - खेत में रोपण करके, कलम लगाकर, पनीरी लगाकर, सीधी बिजाई करके इत्यादि तरीके से बिजाई कर सकते हैं।

अमरूद के बीजों से पौध तैयार (प्रजनन) करने की क्या प्रक्रिया है  

चयनित प्रजनन में अमरूद की परंपरागत फसल का इस्तेमाल किया जाता है। फलों की शानदार उपज और गुणवत्ता के लिए इसे इस्तेमाल में ला सकते हैं। पन्त प्रभात, लखनऊ-49, इलाहाबाद सुर्ख, पलुमा और अर्का मिरदुला आदि इसी तरह से विकसित की गई है। इसके पौधे बीज लगाकर या एयर लेयरिंग विधि द्वारा तेयार किए जाते हैं। सरदार किस्म के बीज सूखे को सहने लायक होते हैं और इन्हें जड़ों द्वारा पनीरी तैयार करने के लिए प्रयोग किया जा सकता है। इसके लिए पूर्णतय पके हुए फलों में से बीज तैयार करके उन्हें बैड या नर्म क्यारियों में अगस्त से मार्च के माह में बिजाई करनी चाहिए। 

बतादें, कि क्यारियों की लंबाई 2 मीटर और चौड़ाई 1 मीटर तक होनी चाहिए। बिजाई से 6 महीने के पश्चात पनीरी खेत में लगाने के लिए तैयार हो जाती है। नवीन अंकुरित पनीरी की चौड़ाई 1 से 1.2 सेंटीमीटर और ऊंचाई 15 सेंटीमीटर तक हो जाने पर यह अंकुरन विधि के लिए इस्तेमाल करने के लिए तैयार हो जाती है। मई से जून तक का वक्त कलम विधि के लिए उपयुक्त होता है। नवीन पौधे और ताजी कटी टहनियों या कलमें अंकुरन विधि के लिए उपयोग की जा सकती हैं।